Tuesday, 31 December 2019

आंग्ल नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं


द्वारे ख़ुशियाँ  करें  प्रतीक्षा
भूलें हम  सब  बीती  बातें।
नये  वर्ष  का  नवल सवेरा
कर दें विस्मृत दुख की रातें।।

छूट गये  कुछ मित्र  पुराने
नए अपरिचित होंगे अपने।
टूट गये कुछ स्वप्न  सुनहरे
सजेंगे फिर से नूतन सपने।।

चादर  घनी  घिरी कुहरे  की
रूप धरा का बिखरा बिखरा।
पर  रिश्तों की  गरमाहट  से
जन जन का है चेहरा निखरा।।

बहुत से खट्टे-मीठे  अनुभव
मिले पुराने  वर्ष  से हमको।
मिलेंगी प्रतिपल नव सौगातें
नये साल का हर्ष है सबको।।

आज नया कल  हुआ  पुराना
अटल नियम है यही प्रकृति का
नया वर्ष जो  आज सुखद  है
कल हिस्सा  होगा स्मृति का।।

क्या कृत्रिम सपनों में जीना
बीती बातों  का क्या  रोना।
मूल मंत्र जीवन का यही है
वर्तमान  में  ख़ुशी  संजोना।।
              ।। अर्चना द्विवेदी ।।
                    अयोध्या

Saturday, 21 December 2019

एक धरती एक अम्बर

एक ईश्वर,एक धरती,ये 
अम्बर एक हमारा  है।
कहीं मंदिर कहीं मस्ज़िद
कहीं  ईशु  सहारा  है।।

क्यूँ बनते देशद्रोही तुम,
करा कर नित नये दंगे।
वतन जितना हमारा है 
वतन उतना तुम्हारा है।।

बहा लो  खून अपनों  का 
न होगा कुछ तुम्हें हासिल
पड़ोसी  देश  हँसता  है 
हमें कहकर बेचारा है........।।

कोई हिन्दू,कोई मुस्लिम 
कोई सिख है ईसाई है,
मनाते  ईद  होली  संग 
अजब अद्भुत नज़ारा है।।

न  तोड़ें  एकता  अपनी
तनिक छोटी सी बातों से,
निभा लें संस्कृति अपनी 
अडिग ये भाई चारा है।।

प्रेम  सौहार्द से  अपना 
रहा सदियों का नाता है।
रहे शांति सदा इस देश 
में इतना इशारा है.....।।
                             ।।  अर्चना द्विवेदी।।

Friday, 6 December 2019

नारी हूँ लाचार नहीं

अहा!
.........प्रसन्न  हुआ  मेरा  मन
सुनकर सुखद सूचना आज।
अन्यायी  को  दंड मिला  है
न्याय ने जीत का पहना ताज।।

गर्व  मुझे  उस  भाई  पर  है
जिसने दुष्कर खेल ये खेला।
है  प्रणाम  पावन  राखी  को
पल पल मुश्किल को है झेला।।

सुन लो दुष्ट, कुकर्मी,वहशी
जाग उठा  नर पौरुष  अब।
आँख उठा कर देख जरा तू
कर दें  राख जलाकर  सब।।

स्वीकार करो ये नमन मेरा
बेटियों  ने  दिया बधाई  है।
अवतार लिया यदु भूषण ने
हर घर की लाज  बचाई है।।

मैं भारत  माँ  की  बेटी  हूँ
अफ़सोस नहीं इक नारी हूँ।
अब हूँ सतर्क हर विपदा से
न समझो.... मैं  बेचारी हूँ।।
       अर्चना द्विवेदी

Sunday, 1 December 2019

अश्रुपूरित श्रद्धांजलि



नहीं जली केवल एक  बेटी,
नारी का सम्मान  जला  है।
जहाँ  नारियाँ  हुई  उपेक्षित,
असमय आई वहाँ  बला है।।

मानवता  हो  गयी है लज्जित,
रहा  नहीं  विश्वास  किसी  पे।
जाल  बिछा  थे  घात  में  बैठे,
क्रूर चलाक जो अति वहशी थे।।

क्या  लुप्त  हो  गई  पौरुषता,
जो देश की अद्भुत  थाती थी।
या रहे नहीं  अब  श्याम  यहाँ ,
जब चीर स्वयं बढ़ जाती  थी।।

चुप बैठो ना हुंकार  भरो......
अस्मिता न लुट पाए नारी की।
ये  सबला  सृष्टि सृजन  कर्ता
पहचान नहीं  लाचारी की...।।

जल  जाए  लंका रावण  की,
फिर  बेटियों का सम्मान बढ़े।
जीवन हो  सुरक्षित घर  बाहर,
एक सभ्य समाज की नींव गढ़ें।।
                    ।।अर्चना द्विवेदी।।
                           अयोध्या

Wednesday, 30 October 2019

तुम बिन फ़ीकी रही दिवाली



तुम बिन फ़ीकी रही दिवाली

लाल बिना घर सूना सूना
माँ न चाहे ख़ुशियाँ  छूना।
धैर्य समंदर  टूट सा  गया
कोना कोना बना सवाली।।

आया नहीं  आँख का  तारा 
पिता को है जो सबसे प्यारा।
व्याकुल बाहें  चुप  हैं  रस्ते
रहा उदास यूँ घर का  माली।।

मुन्ना  मुनिया बहन बेचारी
राह तकें दिन रात तुम्हारी।
द्वारे-द्वारे ख़ुशियाँ  बिखरीं
इस घर पर छाई थी काली।।

दीप जले लाखों इस जग में
किंतु   अंधेरा  मेरे   मग  में।
तुम्हीं उजाला,तुम आकर्षण
तुम  मेरे  सिंदूर  की  लाली।।

आये नहीं मलाल न  मुझको,
देश से सच्चा प्यार है तुमको।
कर दूँगी परित्याग  सुखों का,
गले लगाकर दुःख की डाली।।

सीमा पर से  जब  घर आना
साथ में विजय  संदेशा लाना।
दीप जलाऊँगी  चुन चुन कर
स्वर्ग हो घर चहके खुशहाली।।

मातृभूमि  से न  कुछ बढ़कर
मान मिले इस पर ही लुटकर।
गर्व मुझे हूँ तेरी संगिनी......
तुम्हीं से  भारत  वैभवशाली।।

तुम बिन फ़ीकी रही दिवाली
             ।।अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो:साभार गूगल

Sunday, 27 October 2019

दीप पर्व दीपावली


दीप पंक्तियों में सज धज कर 
मन  ही  मन  इठलायें.....
कितनी सुखद मनोहर बेला 
सिय  प्रभु  अवध  में  आये।।

तन मन सबके हर्षित पुलकित,
पावन  घड़ी   सुमंगल  आज ।
सजी दुल्हन सी देव अयोध्या ,
पूर्ण  हुआ  शापित  वनवास।।

निरख रहीं ममता प्रिय छवि को
 कौशल  पति  हितकारी  की।
कंचन  कोमल  काया दमकी ,
जनक  सुता  सुकुमारी   की ।।

झर झर अश्रु  बहे  उर्मि  के ,
देख लखन प्रीतम को पास।
उर  अंतस  में  हुई  रोशनी ,
कोटि दीप दृग जलते आज।।

द्वार सजे तोरण हो उत्सुक,
आँगन खिलती रंग रंगोली।
सुख  वैभव  ऐश्वर्य संग  में ,
चढ़कर आती लक्ष्मी डोली।।

आओ मिल जुल दीप जलाएं,
द्वेष कलुष का तम मिट जाए।
सत्य  राम,  सुंदरता   सीता ,
बन प्रतीक कौशल पुर आएं।।

प्रथम दीप वीरों की ख़ातिर,
दूजा  माँ के  चिर  वंदन  में।
सजे दिवाली,खिले दिवाली,
दीप जले फिर  अन्तर्मन में।।
                     ।।अर्चना द्विवेदी।।

Sunday, 20 October 2019

माँ-बेटी


जब याद सताती है माँ की
अपलक आईना तकती हूँ
मैं अपनी  माँ के  जैसी  हूँ
सच अपनी माँ के जैसी हूँ।।

ममतामयी चेहरा,निश्छल आँखें
वात्सल्य  भरा  है  सीने  में
निःस्वार्थ भाव,कोमल  बाहें
आनंद  मिले  फिर  जीने  में।।

Thursday, 17 October 2019

सुनो प्रियतम


www.dwivediarchana.blogspot.com की तरफ से सभी सुहागिनों को करवाचौथ व्रत की अनंत शुभकामनाएं....

सुनो प्रियतम कि अब तुम सिर्फ़ मेरे सिर्फ़ मेरे हो,
अँधेरी  काली  रातों  में  सघन  सुंदर  सबेरे  हो।

मेरी बिंदिया,मेरी चूड़ी है कंगन में  खनक तुमसे,
होंठ लाली पाँव बिछुआ है वेणी में लचक तुमसे।
महक जाती  मेरी साँसे  बस  तेरे  पास  होने  से,
कभी लगता ये जग सूना  लगे बाहों  में घेरे हो।।

Saturday, 12 October 2019

तुम पर गीत मैं लिखूँ


सोचती हूँ आज तुम पर गीत मैं  लिखूँ,
तुम हो हृदय के सच्चे मनमीत मैं लिखूँ।
रस छंद अलंकारों से श्रृंगार खूब  करूँ ,
धुन नई नवल ताल सच्ची प्रीत मैं लिखूँ।।

चंदा सा  शीतल  तेरा  व्यवहार  मैं  लिखूँ ,
सूरज सा प्रखर जिन्दगी का सार मैं  लिखूँ।
पर्वत सा  अटल धैर्य उर  लहरों सी  उमंगे ,
सारे उदधि से गहरा तेरा प्यार  मैं  लिखूँ।।

Saturday, 14 September 2019

हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं


www.dwivediarchana.blogspot.com पर आप सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...

जैसे दुल्हन के माथे पर,सोहे  लाल सुनहरी बिंदी
वैसे ही हर एक जीवन का,रूप सँवारे भाषा हिंदी।।

ये संस्कृति की संरक्षक,वाहक अनमोल धरोहर है 
गंगा सी निर्मल  पावन व  सुंदर  ज्ञान सरोवर है।।

देश की उन्नति और प्रगति की,एकमात्र पहचान है
प्रेम,स्नेह,अपनत्व निहित,भारत माता की शान है।।

जकड़ा था जब  भारत,अंग्रेजों  की क्रूर गुलामी से
जाति, धर्म का भेद मिटाकर,बचा लिया नाक़ामी से।।

Tuesday, 10 September 2019

सुनो चाँद तुम


धैर्य असीमित,हिम्मत अद्भुत हृदय संजोए  रहते हम
गिरकर उठना,आगे बढ़ना लक्ष्य प्राप्ति दम भरते हम

चूक  गए  थोड़ी  दूरी से  इसका  हमें मलाल  नहीं
असफलता से हार मान लें उठता कोई सवाल नहीं।

Thursday, 5 September 2019

शिक्षक


www.dwivediarchana.blogspot.com पर आप सभी को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं...


शिक्षक वो आभूषण जिसका कोई मोल नहीं होता
धारण कर ले जो जीवन में भाग्य नहीं उसका सोता।

संचित ज्ञान से सिंचित करता अमिट स्नेह बरसाता
ज्ञान के  सागर  में नहला  यह  जीवन  पार लगाता।

स्वयं दीप बन कर जलता पर हमें प्रकाशित करता
उठा धूल से बना फूल , नव सुरभि सुवासित करता।

Sunday, 1 September 2019

बूढ़ी माँ दर्द


अल्फ़ाज़ बूढ़ी माँ के अब लब पे ठहर गए,

               आते नहीं क्यूँ लौटकर , जो हैं शहर गए।

आया शहर से ख़त तो थी रुख़सार पर नमी

               क्या ख़ैरियत से हो तुम ? जाने किधर गए।

मेरी परवरिश में कोई कमी रह गयी थी क्या

               पूछा न हाल-ए -दिल मेरा जबसे शहर गए।

आँचल की मेरे छाँव में तुम ,  दिन रात थे महफ़ूज़

          मगर इस शौक-ए-आलम से,तेरे जज़्बात मर गए।

Thursday, 29 August 2019

ग़म न कर


जूझने के हौसले को कम न कर
उम्र तेरी ढल  रही है ग़म न  कर।

ये तेरी  पेशानी  की  गहरी  लकीरें
है तज़ुर्बे ए शख़्सियत तू गम न कर।

याद करके माज़ी को अफ़सोस क्यूँ है
आज तो ख़ुशियाँ मना ले ग़म न कर।

Tuesday, 13 August 2019

आसमाँ छूने की ख़्वाहिश

आसमाँ छूने की ख़्वाहिश,हो अगर जज़्बात में
चाँद  देगा   रोशनी ,काली  अंधेरी   रात में ।।

सर झुका देंगे फ़रिश्ते ,आकर तेरी दहलीज़ पर
लफ्ज़ ऐसे हों कि दिल,बिक जाए तेरी बात में।।

चन्द रिश्तों से सजा,दामन सितारों की तरह
नूर बनकर आ गए,कुछ दोस्त यूँ  सौगात में।।

जाने किस उम्मीद  में ,जीते  रहे सब उम्र  भर
हो गयी पूरी वो ख़्वाहिश,आगोश-ए-वफ़ात में।।

Tuesday, 6 August 2019

बधाई मेरे देश


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लहरायेगा  प्यारा   तिरंगा
अब कश्मीर  की  घाटी में।
फूल ,कली,तन-मन चहकेंगे
स्वर्ग  सी सुन्दर  वादी   में।।

हर्षित ,पुलकित ,आनंदित 
जन -जन का मन हर्षाया है।
हुआ अखण्ड ये भारत अपना
जिसे  देख  शत्रु थर्राया  है।।

Monday, 29 July 2019

शिव आराधना

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पढ़िये भगवान शिव के सोलह पवित्र नामों से युक्त शिव की आराधना


करती हूँ गुणगान मैं भोले 
शम्भू ,शंकर  नाथ  की।
वेदों  और  पुराणों  में है
महिमा  महाकाल  की।।

सृष्टि सृजन के आदि स्रोत
ये  ज्योतिष  के  आधार हैं।
सौम्य  प्रकृति  व रौद्र रूप
लय-प्रलय  महासंहार  हैं।।

शशिशेखर ,शिव एक तपस्वी
गले  वासुकि   की   माला।
भस्म लेप श्रृंगार है अतिप्रिय
पिए हलाहल  विष  प्याला।।

पति परमेश्वर आदिशक्ति के
नीलकण्ठ    हैं   धारी ।
हुआ वियोग सती माता का
किया   तांडव  भारी।।

वज्र, कृपाण, पाशु हैं आयुध
पशुपति,  कैलाशी  शिव के।
ज्ञान ,साधु , वैराग्य , त्याग,
कइ रूप कपर्दी ,गिरिप्रिय के।।

मंत्र-ध्यान प्रिय बिल्वपत्र से
मोक्ष मार्ग खुल जाता है।
मृत्युंजय के नाम मात्र से
पाप -दोष  धुल जाता है।।

हे !सुरसूदन , हे! परशुहस्त
ये भेंट मेरी स्वीकार करो।
शाश्वत सत्य देव अज रूपी
तारक  अंगीकार  करो।।
             
                  ।। अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो:साभार गूगल
एक प्रयास अपनी बोली अवधी में पढ़िए-
कजरी

Sunday, 28 July 2019

कजरी


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जियरा हुलसै जैसे सावन की बदरिया 

चला हो सखी झूलि आई न
चम-चम चमके मोरी धानी रंग चुनरिया
चला हो सखी झूलि आई न
बागा मोर पपीहा बोले ,
सुनिके मनवा मोरा डोले 
महके सोंधी माटी,बहै जब बयरिया 
चला हो सखी झूलि आई न
झूला परिहैं कदम्ब की डारी 
झुलिहैं मिलिके सखियाँ सारी
करिहैं हँसी ठिठोली,गैइहैं जब कजरिया 
चला हो सखी झूलि आई न
झूला छुहिएँ गगन अटारी
हरषहिं राधा कृष्ण मुरारी
आपन गऊवां लागी देवतन कै नगरिया
चला हो सखी झूलि आई न
जब से छूटल मोरा नैहर 
शहर बसे हैं जाईं के पीहर
नीक लागे नाही हमका शहरिया
चला हो सखी झूलि आई न।             
                              अर्चना द्विवेदी 

 फ़ोटो:साभार गूगल                                                               

Sunday, 14 July 2019

पिता का दर्द




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शब्द नहीं उस पिता के दर्द को लिख सकूँ...😢क्या लिखूँ उस पिता के मनोभावों को जिसके विश्वास और प्रेम   को ह्रदय के टुकड़े ने ही तोड़कर रख दिया हो।।सोचती हूँ क्या पल भर का आकर्षण वर्षों के स्नेह,त्याग,और तपस्या पर इस क़दर हावी हो जाता कि परिवार की मान मर्यादा को तोड़ने में तनिक संकोच नहीं लगता....
पढ़िए इसी संदर्भ में एक पिता के दर्द से भरी मेरी नई स्वरचित कविता

पी-पीकर अपमान घूँट के
पिता  व्यथित हो  रोया है,
घर की लज्जा, मर्यादा ने
मान , नाम सब  खोया है।

सौ-सौभाग्य प्रबल थे मेरे
जब बेटी गोद में पाया था,
माँ ने सखी,हृदय को संबल
फूला  नहीं  समाया  था ।।

पढ़े-बेटियाँ , बढ़े -बेटियाँ  
जैसे स्वप्न को पूर्ण करूँगा,
शिक्षा-दीक्षा  संस्कार   में 
किंचित पीछे नहीं हटूँगा।।

दो कुल का तटबंध बनेगी
गौरव ,मान .... बढ़ाएगी,
आदर्शों की प्रतिमा बनकर 
सदा, हँसे......मुस्कायेगी।

क्या चंद पलों का आकर्षण??
इतना   हावी  हो   जाता है,
वर्षों की प्रेम....तपस्या का
न अर्थ कोई रह जाता है????

मैं बदहवास,माँ  गुमसुम है,
लाचार हुआ घर का चिराग।
किससे कहूँ मन की व्यथा?
पसरा है  रिश्तों में  विराग।।

सर झुका मेरा सम्मान भरा 
सब अजब दृष्टि से देख रहे
पालन-पोषण,अति आजादी
पर कटुक वचन है फेंक रहें।।

हे ईश्वर!ऐसी   बेटी का अब
पिता  बनाना   मत  मुझको,
इस अनुपम स्नेह के बंधन की
अब लाज बचाना है तुझको।

क्या शब्द लिखूँ कुछ रहा नहीं
एक पिता का दर्द बताने को
बेटी हूँ मैं, अति लज्जित हूँ
कुछ रहा नहीं समझाने को।

एक  बेटी  ने ही  बेटी  के
अस्तित्व पे प्रश्न उठाया है,
परप्रेम के मोह में बन स्वार्थी
रिश्तों  का मोल  घटाया है।।

न माफ करूँगी मैं तुझको
न  ही  कोई .. समझायेगा ,
पल भर का गलत फ़ैसला ही
जीवन  भर  तुझे  रुलाएगा।

कर दिया कलंकित जननी को
बेटी पे रहा विश्वास न अब,
हर बेटी से विनती..... मेरी
कुछ लोक लाज का मान तू रख।

मत भूल भारतीय संस्कृति को
जहाँ नारी पूज्य सी प्रतिमा है,
संकोच, त्याग और शील,स्नेह
से  निखरी  सदैव  गरिमा है।।
                                  ।।अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो साभार:गूगल

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पापा मैं पराई नहीं
मैं नारी हूँ


Tuesday, 2 July 2019

सच्ची सुन्दरता




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नहीं काम  की  वो  सुंदरता,
रंग लगा हो  उथलेपन  का।
व्यर्थ है वो सारी  आकुलता,
जिसमें मर्म न अपनेपन का।

अर्थ न कोई प्रेम  भाव का,
कवच चढ़ी हो नफ़रत की।
नहीं मिलेगी उसको मंज़िल,
चाह जिसे हो ग़फ़लत की।।

क्या करना इस सुंदर तन का,
लुभा सके जो केवल ही तन।
मन से  मन का  तालमेल  हो,
तभी सफल होगा ये जीवन।।

कल न  होगा तन  ये  सुंदर,
पर सुंदर  मन  साथ  रहेगा।
एकाकीपन  का  बन साथी,
अंतिम क्षण तक साथ चलेगा।।
                     ।। अर्चना द्विवेदी।।

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बसन्त ऋतु का स्वागत
सच्ची चाहत
भारत मेरा घर


Saturday, 8 June 2019

अश्रुपूरित श्रद्धांजलि


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रमज़ान का पवित्र महीना,ईद का दिन जब पूरी दुनिया खुशियों के समंदर में डूबी हुई थी उसी पल भारत के शहर अलीगढ़ में एक मासूम बच्ची के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर नृशंस हत्या कर दी गयी।मन बहुत ही व्यथित और द्रवित है कि क्या हो गया है हमारे समाज को जहाँ चंद वर्षों की अबोध बेटियाँ भी असुरक्षित हैं।मेरे अश्रुपूरित शब्द उस मासूम कली को सच्ची श्रद्धांजलि हैं जो बिल्कुल निर्दोष थी.......😢😢


मासूम कली, नन्हीं सी जान के,

बचपन को पल में कुचल दिया।
दहलीज़  लाँघ   निर्ममता   की,
कोमल से तन को मसल दिया।।

क्या दोष था निश्छल आँखों का?

वहशीपन ने जिन्हें फोड़  दिया। 
किंचित सी दया न हृदय जगी..
मानवता का  संग छोड़  दिया।।

उफ़! कितनी पीड़ा-दर्द छुपा,

होगा  मासूम  के  क्रंदन   में।
हो  गया पतन  नैतिकता का,
एहसास  हुआ उस रुदन  में। 

लग जाती धूप तनिक तन को,

माँ आँचल से ढक  लेती  थी।
लगती खरोंच  बस नाम मात्र,
नयनों में स्नेह  भर देती  थी।।

कुछ पल  ममता  से दूर  हुई,

नर गिद्ध शिकारी से अंजान।
तड़पी सिसकी हर पल होगी,
नर भक्षी बने थे   वो  हैवान।।

तेज़ाब फेंक उस  गुड़िया  की,

अस्मिता को नोंच-नोंच डाला।
हे प्रभु! तू  क्यों है मूक  बधिर,
उस पल क्यों अंत न कर डाला।।

दुष्टों  के   क्रूर   कुकर्मों   से,

धरती बोझिल सी होने लगी 
नारी अस्तित्व  है  संकट  में,
बेटियाँ खौफ़ से डरने  लगी।।

अब सज़ा क़ैद से  होगा क्या,

दो  चार  दरिंदे   कम   होंगे ।
बन जाति धर्म के झगड़े फिर,
इस राष्ट्र की  नींव  हिला  देंगे।।

कलुषित विचार व जाति धर्म,

के द्वेष को कम करना  होगा।
शिक्षित  समाज, संस्कारवान,
पीढ़ी  का  दम  भरना  होगा।।

अपराध मुक्त  हो  भारत वर्ष,
आओ मिल कर  संकल्प करें 
स्वछंद  विचर   लें   माँ-बहनें,
एक स्वस्थ समाज की नींव धरें.....
                     (अर्चना द्विवेदी)😢

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आहों से भरी सिसकी सुनकर
प्रकृति की सीख
भारतीय नव वर्ष की शुभकामनाएं

Saturday, 1 June 2019

उफ़!ये गर्मी

  

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अद्भुत  शिल्पकार  है  ईश्वर...
प्रकृति रूप है विविध सजाया।
छः  ऋतुओं ने  क्रमशः आकर,
स्रष्टि  सृजन  अनमोल बनाया।।

ज्येष्ठ मास की असहय गर्मी,
ताप  प्रचंड   गरम  लू   देती ।
दिवस हों लंबे अति लघु रातें,
सूर्य सुधा सम द्रव  पी लेती।।

चहुँ   दिशाएँ  तपती  रहती,
चकवा-चकवी प्यासे फिरते।
सूखे  तरुवर,  कूप,  लताएँ,
पथिक राह में जलते  तपते।।

नीड़ में छिपकर पक्षी बैठे ,
पशुओं को तरु छाया भाये।
धनिक चले शिमला,मंसूरी,
दीन खुले नभ में सो जाए।।

छाया तरस  रही छाया  को,
आकुल फिरते हैं सब प्राणी।
पड़ी फुहारें जब बारिश की ,
मन महके पा सोंधी माटी ।।

अति दुखदायक है ये मौसम,
प्रकृति लगे  नीरस  सुनसान।
अधिक ताप से  अच्छी वर्षा,
नवल सृष्टि का  एक वरदान।।

दुःख-सुख आते जाते रहते,
बन प्रेरणा हमें शक्ति  देती।
मत घबराना कष्ट-दुःखों से,
तपती धूप ये हमसे कहती।।
                        (अर्चना द्विवेदी)
फ़ोटो:साभार गूगल

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बेटियाँ
बसंत ऋतु का स्वागत

Saturday, 25 May 2019

आहों से भरी सिसकी सुनकर




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विवाह हमारे सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग हैं जो कि उत्सव और खुशियों का प्रतीक है।हर लड़की के जीवन की नई शुरुआत होती है।परंतु आदिकाल से चली आ रही दहेज़ जैसी सामाजिक कुरीति ने,धन के लालच,लोभ ने जाने कितनी ही बेटियों को एक लाचार पिता माता से छीन लिया है।यही कारण है कि आज भी निर्धन पिता दहेज़ के आगे बेबस और मौन है।तो क्यों न हम आज से ही दहेज़ लेने और देने दोनों का विरोध करें और अपनी प्रिय बेटियों को बचाने का संकल्प करें...


आहों से भरी सिसकी सुनकर,

मेरी  आँखें  भर  आयी   हैं ।
लाचार  पिता -माता ने  फिर,
प्रिय  बेटी  आज गंवाई  है ।।

मेहँदी का  रंग  न  छूटा  था,

कोमल,नाजुक सी हथेली की।
घर-बार  बेचकर  अपनों   ने,
क़िस्मत में  लिखी हवेली थी।।

गुण -रूप ,त्याग  की  देवी  ने ,

छुप-छुप कर रोना सीख लिया।
धन , वैभव  और   दिखावे  ने ,
मानवता  चकना चूर  किया ।।

वो ममता की पावन  प्रतिमा,

कितनी  तड़पी तरसी  होगी।
खल रूप निशाचर मानव को,
आई  न  तनिक  दया  होगी।।

जो स्वप्न सजा लाखों मन में,

पीहर  के  घर  में  आई   थी।
बिखरे  सपने, आशा टूटी वो,
ज्वाला में  आज  समाई  थी।।

अब झुलस रही धन,लिप्सा के ,

दावानल में  घर  की  कलियाँ।
हो  रही  धरा वीरान  सी  अब,
बिन  लक्ष्मी  के  सूनी गलियाँ।।

इस दहेज  रूपी  सुरारि  ने,

आदर्शों  का  संहार  किया।
बेटी  चहके  न   आँगन  में ,
हर पिता ने यही प्रयास किया।।

ये सोच के मन कंप उठता है,

शायद  कल  मेरी  बारी   हो।
मेरी नाज़ुक कली सी बेटी पर,
चलती  दहेज़ की  आरी   हो।।

अब समय नहीं वो दूर रहा,

जब  बेटी  गोद न  खेलेगी।
न मस्तक  पर  होगा  चंदन,
शहनाई  द्वार  न    गूँजेगी ।।

सुन  लो  दहेज  लेने   वालों,

इस तांडव का अब अंत करो।
निर्धन कुटुम्ब,लाचार बहु की,
बेबस  आहों  से  डरा  करो ।।

जब तक दहेज के दानव का ,

होगा  निर्मम    संहार   नहीं।
अवनी से लेकर अम्बर  तक,
होगा  नर  का  उद्धार  नहीं।।
                                   ।।अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो:साभार गूगल

Thursday, 16 May 2019

पापा मैं पराई नहीं


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अक़्सर लोगों को कहते सुना है कि बेटे माँ के और बेटियाँ पिता के क़रीब ज्यादा होती हैं।इस बात का साक्ष्य मैं स्वयं हूँ कि मैं भी अपने पापा के सबसे क़रीब और लाडली बेटी हूँ।जो काम माँ के होते हैं वो सब मेरे पापा ने मेरे लिए किया..अपनी अल्प सी कमाई में मेरी पसंद की फ्रॉक लेना,बालों में कंघी करना,स्कूल के लिए तैयार करना और मेरे बेहतर भविष्य के लिये जो सम्भव हो सका सब किया।एक बेटे से बढ़कर प्यार और दुलार किया।आज मेरे पापा को मेरी जरूरत है पर इस समाज की कुछ रीति-रिवाजों ने मुझे आपसे पराया कर दिया है।फिर भी मुझसे जितना हो सकेगा उतना हरसंभव करूँगी मेरे प्रिय पापा.....मैं हर पल आपके साथ हूँ



माना दुनिया की नज़रों में,

मैं हुई पराई तुमसे हूँ.......।
इन रस्मों के बंधन में घिरी,
अब कोसों दूर मैं तुमसे हूँ।।

मैं बेटी थी........मैं बेटी हूँ,

तेरे आँगन की फुलवारी हूँ।
तेरे स्नेह ,त्याग की बूंदों से,
सिंचित महकी सी क्यारी हूँ।।

बेटों से  ज्यादा  प्यार  मेरी,

झोली   में  तुमने  डाला  है।
तुम त्याग,स्नेह की मूरत हो,
नाज़ो से  मुझको  पाला है।।

माँ की ममता सा स्नेह लिए,

बचपन में झुलाया  बाहों में।
खुद राह चुन लिए शूल भरे,
पर फूल मिले मुझे राहों  में।।

बेटी-बेटों  के  अंतर  का ,

कभी भेद नहीं  जाना मैंने।
है गर्व मुझे इस जीवन पर
तुझे पिता रूप पाया  मैंने।।,

ये सच है  एक पिता  बेटी ,

का रिश्ता अनुपम होता है।
होती  बेटी  लाचार  बहुत,
मजबूत हृदय जब रोता है।।

कुलदीप नहीं तेरे वंश का मैं,

पर  इतना   वादा  तुझसे  है।
हर कठिन राह में साथ मेरा,
पाओगे  इरादा खुद  से  है।।

हे प्रभु! इतनी विनती  मेरी,

स्वीकार हृदय से कर लेना।
हर जन्म में गोद यही पाऊँ,
अधिकार पुत्र का दे  देना।।

                        (अर्चना द्विवेदी)

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Saturday, 11 May 2019

माँ


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माँ ईश्वर का दिया अनुपम और अनमोल उपहार है।माँ की गोद मे स्वर्ग बसता है।माँ के अनुपम प्रेम को शब्दों में लिखना नामुमकिन है फिर भी मैंने अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोया है।उम्मीद है आप सबको पसन्द आएगी.....माँ को समर्पित

जिसके एहसान का मोल कोई नहीं
माँ है अनमोल माँ जैसी कोई नहीं

अपनी खुशियों को खुशियाँ समझती नहीं
 आँखें पढ़ लो जुबां से वो कहती नहीं

सबके सपने  सजाती है जो रात  दिन,
ऐसी कोमल सी माँ सबको मिलती नहीं।।

 माँ की ममता को ठुकरा के जाना नहीं
माँ के बिन जिंदगी में ठिकाना नहीं ।

देवता भी तरसते हैं जिस प्यार  को,
ऐसे आँचल को ठुकरा के जाना नहीं ।

माँ की सूरत में राधा नजर आएगी,
माँ की मूरत में दुर्गा संवर आएगी।

माँ की इज्जत करो अपनी दौलत समझ,
तेरे कदमों में खुशियां बिखर  जाएगी।।

 माँ के बिन सारी खुशियाँ अधूरी लगे ,
 हर कदम हर राह पर  माँ जरूरी लगे ।

माँ की ममता का एहसास इतना सुखद ,
देवता  भी मनुज   रूप  धरने   लगे ।।

                 ।।अर्चना द्विवेदी।।
फोटो:साभार गूगल

Thursday, 2 May 2019

मजदूर हैं हम





मत कहना कि मजबूर हैं हम,
हाँ सच है कि मजदूर हैं हम।
सजते हैं नित्य नए सपने बस,
सुख-सुविधाओं से दूर हैं हम।।

दिन रात परिश्रम करते हैं,

हम झोपड़ियों में रहते हैं ।
महलों को देकर रूप नए,
संतोष हृदय में रखते है।।

हम दंश झेलकर मौसम के,

विपदा में भी मुस्काते हैं 
रूखी सूखी रोटी न मिले,
तो खाली पेट सो जाते हैं।।

ये क्षुधा उदर की है निष्ठुर ,

दिन रात परिश्रम हम करते।
वो मेहनत भी क्या मेहनत है??
जो शिशुओं के पेट नहीं भरते।।

हमें तपिश धूप की मिलती है,

तुम्हें शीतल ठंडी छाँव मिले।
हम सेवक हैं तुम स्वामी हो,
इस रिश्ते को कुछ मान मिले।।

इस अर्थ विषमता ने हमको,

कितना बेबस, लाचार किया।
स्वार्थी बनकर हर रिश्तों ने,
मुश्किल में दामन छुड़ा लिया।।

सुख,वैभव के सामान नहीं,

हम स्वर्ग बनाते छप्पर में।
हमसे न कोई दुर्भाव करो,
हम जान डालते पत्थर में।।

अभाव भरा जीवन जीते,

तेरे आँखों का आँसू पीकर।
कुचले जाते फुटपाथ वही,
जहाँ स्वप्न सजाते हम मिलकर।।

तुम पर्व मना कर सालों से,

हमें दया का पात्र बनाते हो।
बस छीन रहे सम्मान मेरा,
और झूठे दंभ दिखाते हो।।

सुन लो सुख भोगी इंसानों,

हम भी ईश्वर की संतानें।
जब लहू,रूप सब एक ही है,
तो अर्थ विषमता क्यों ठानें??
                           ।।अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो:साभार गूगल                          

Saturday, 20 April 2019

लौट आओ बचपन






हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जिया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न हो ।माँ की गोद,पापा का स्नेह,भाई-बहन के साथ हुई शरारतें,सखियों की नेक झोंक सब कुछ बहुत याद आता है।ऐसे ही कुछ भूले बिसरे भावों को समेटे हुए मेरी ये नई कविता ...



फिर से आजा तू प्रिय बचपन, 
जीवन की नीरस राहों में।
फिर से जी लूँ वो मीठे पल,
ममता दुलार तेरी बाहों में।।

डगमग जब होने लगें पैर ,
गिरने से पहले थाम ले तू।
आँसू से भरे हों नयन मेरे,
गलती मेरी ,पर मान ले तू।।

मैं बोलूँ तोतली बोली जब ,
सुन सुन कर हर चेहरा चहके ।
दादी नानी के किस्से सुन ,
मेरे जीवन की बगिया महके ।।

दौडूँ भागूँ कर मनमानी,
माँ की मीठी फटकार सुनूँ।
पापा के कंधे पर घूमूँ  ,
सपनों का नया संसार चुनूँ।।

बेबात लड़ाई सखियों संग ,
गुड्डे गुड़ियों की शादी में.....।
अब ऐसे सुख को मन तरसे ,
जो मिलता उस आजादी में...।।

चाहे हो जाऊँ पचपन की,
पर साथ तुम्हारा न छूटे ।
हँस लूँ रो लूँ तेरी बाहों में,
बंधन अनमोल ये न टूटे ।।

न हृदय में कोई द्वेष पले,
मैं अपना पराया न जानूँ ।
जिन अधरों पर मुस्कान दिखे ,
उन चेहरों को अपना मानूँ ।।

दिन बीत रहे मौसम बीते...,
अनुभव ने नया आयाम छुआ।
तेरी अनुपम स्मृतियों से...,
नव ऊर्जा का संचार हुआ ।।

सुन बचपन ! तू प्रेरक मेरा ,
हर ग़लती से मैंने सीखा।
छू तेरी सुखद मधुर यादें ,
जीवन सुन्दर बन कर बीता।।

मैं हूँ पतंग.....तू डोर मेरी,
उड़ चलें संग अरमान लिए।
अनुपम संसार बसा लेंगे....,
खुशियों का सब सामान लिए।।
                            ।।अर्चना द्विवेदी ।।

फ़ोटो: साभार गूगल

Saturday, 6 April 2019

भारतीय नव वर्ष की शुभकामनाएं


नवल वर्ष के नवल दिवस पर,
हर्ष का दीप जलाएं मिलकर।
ऋतु ने ओढ़ लिया नव चादर,
प्रकृति का नव सौंदर्य उजागर।।

वसुधा कर ली षोडश श्रृंगार ,
छवि दिव्य अलौकिक है अपार।
स्नेहिल उर अतिशय प्रीत भरे ,
बन परम पुरुष का प्रणय द्वार।।

चहुँ ओर सजी सरसो पीली,
अलि गुंजन मन उल्लास भरें।
सुन मधुर कोकिला की बोली ,
विरहित मन का संताप हरे।।

भर ताप ग्रीष्म का मधुर मिलन ,
किसका यह अनुपम सृष्टि सृजन।
स्वर्णिम किरणों से सजे आम ,
हो व्यक्त रूप अतुलित ललाम।।

खेतों में महकती पकी फसल,
भरती आशा उल्लास नवल।
नव दुर्गा पूजन घर घर में..,
हो शांति भक्ति सबके उर में।।

स्वागत नव वर्ष का हम कर लें ,
आपस की कटुता कम कर लें।
यह संस्कृति है अनमोल धरोहर,
संकल्प नवल मन में भर लें।।
                                   ।।अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो:साभार गूगल

Thursday, 28 March 2019

भारत है मेरा घर



सारी खुशियों दिल में समेटे, सदा हंसाता मेरा घर ,
आंधी तूफानों को सहकर ,हमें बचाता मेरा घर ।।

भाई बहन पिता माता की ,यादों का मीठा संसार
 सारे सपने घर में पूरे , मन उड़ जाता पंख पसार
 दादी मां की सुना कहानी ,अच्छी नींद सुलाता घर //

कंकड़ पत्थर तन में भर ,मजबूत बहुत बन जाता है
प्रेम ,त्याग ,बलिदान करो ,घर सच्ची राह दिखाता है
थकन मिटाता दिन भर की ,सम्मान बढ़ाता मेरा घर।।

आवासहीन कितने बच्चे ,दर बदर भटकते रहते हैं
गर्मी में लू-धूप , ठंड में ,शीतलहर सहते रहते हैं
एक स्वप्न है आंखों में तैरता , हो पाता एक मेरा घर ।।

तेरा , मेरा , अपना , पराया , स्वार्थ भरी बातें भूलो
वसुधा को समझो कुटुम्ब,सबको अपनाकर मन छू लो
हर जन का अपना घर हो, जब समझें भारत हैं मेरा घर।।
       ।। अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो:साभार गूगल

Wednesday, 20 March 2019

देखो फिर से होली आई----

आसमान है रंग-बिरंगा...,
चेहरों पर मुस्कान है छाई।
मन ये गाये गीत मिलन के,
देखो फिर से होली आई ।।

जले होलिका गाँव गाँव में,

सारे दुःख संताप हरे....।
महक उठी मीठी गुझिया से,
मधुर प्रेम उल्लास भरे...।।

रंग लगा हाथों में राधा,

ढूंढ रही फिर कान्हा को।
गालों का ये रंग गुलाबी,
भुला न दे बरसाना को।।

कहीं उड़ रही चूनर धानी,

रंग अबीर गुलाल लिए...।
शर्म लाज आँखों में लेकर,
पिया मिलन की आस लिए।।

भंग के मद में चली टोलियाँ,

बजते ढोल मजीरे आज...।
झूमे सखियाँ मिलकर सारी,
गायें गीत सुमंगल फाग...।।

अबकी होली में रंग बरसे,

प्रेम भरी पिचकारी से.....।
द्वेष का रंग न फैले जग में,
सीखो कृष्ण मुरारी से....।।
                                  ।।अर्चना द्विवेदी।।
    फ़ोटो: साभार गूगल          

Friday, 8 March 2019

मैं नारी हूँ

नारी की महिमा आज सुनो,
मैं भी एक कोमल नारी हूँ।
तन मन दोनों ही पावन हैं ,
प्रियतम को अतिशय प्यारी हूँ।

जीवन के कुछ पल ऐसे थे,
महसूस हुआ बेमोल हूँ मैं।
कुछ पथिक मिले अनजाने से,
एहसास हुआ अनमोल हूँ मैं।

उषा की पहली किरण हूँ मैं,
दुःख दूर करूँ मुस्कानों से।
हर स्वप्न करूँ पूरे सबके,
विस्तृत नभ के अरमानों से।

माँ, बेटी,बहन,संगिनी हूँ,
हैं रूप कई इस नारी के।
हर रिश्तों में नवजीवन भर,
पुष्पित हो लूँ फुलवारी में।

हूँ अबला पर कमजोर नहीं..,
माँ दुर्गा,लक्ष्मी, काली हूँ..।
एक सफ़ल पुरुष की नींव हूँ मैं,
होठों पे खिली सी लाली हूँ..।।

अन्नपूर्णा हूँ, वीरांगना हूँ...,
मैं वीर पुत्र की जननी हूँ...।
मैं शक्ति हूँ, प्रभु भक्ति हूँ...,
विष्णु की हस्त कुमुदिनी हूँ..।

निश्छल है हृदय सावित्री सा,
सीता सा पतिव्रत करती हूँ।
जीजाबाई की कोख मेरी..,
भामती का तपबल रखती हूँ।।

संकोच,लाज,और शील,स्नेह,
ये सब नारी के अलंकार...।
न समझो रमणी,भोग्या तुम ,
है विष समान इनका प्रहार ।।

बेटी दहेज से हो पीड़ित ,
आज़ादी का अधिकार नहीं।
पैरों में बेड़ियाँ हों जकड़ी ,
ये नारी को स्वीकार नहीं ।।

मेरा एक निवेदन हर नर से,
मत नारी का अपमान करो।
एक रथ के दो पहिये हैं ये..,
इस धुरी का तुम सम्मान करो.।

नारी विहीन गर हुई धरा ,
सृष्टि का अंत सुनिश्चित है ।
हर कण में सूनापन होगा ,
ईश्वर ने किया ये इंगित है।।

नर वृहद वृक्ष,नारी छाया ,
एक दूजे बिना अधूरे हैं..।
नर योग पुरुष,नारी माया,
जब साथ रहें तब पूरे हैं..।।
                          ।।अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो:साभार गूगल

Sunday, 3 March 2019

कलियाँ उपवन में -बेटियाँ


कलियाँ उपवन में महफूज़ न हो अगर,
बागबां का गुलिस्तां उजड़ जाएगा।।

हर कली मुस्कुराये वो अवसर तो दो,
आसमाँ से फरिश्ता उतर आएगा।।

रब की रहमत बरसती रहेगी सदा,
बेटी-बेटो में अंतर न रह जायेगा।।

बेटियाँ चाँद सूरज सी चमकेंगी जब,
स्वर्ग आकर धरा पर ही बस जाएगा।।

सर पे आँचल न हो भाल सूना लगे,
माँ,बहन,बेटी किसको तू कह पायेगा।।

मां का पूजन करो बेटी इज्जत बने,
 तेरा घर देव मंदिर सा बन जाएगा।।
                                                  ।।अर्चना द्विवेदी।।