Thursday, 29 August 2019

ग़म न कर


जूझने के हौसले को कम न कर
उम्र तेरी ढल  रही है ग़म न  कर।

ये तेरी  पेशानी  की  गहरी  लकीरें
है तज़ुर्बे ए शख़्सियत तू गम न कर।

याद करके माज़ी को अफ़सोस क्यूँ है
आज तो ख़ुशियाँ मना ले ग़म न कर।


है अगर तन्हाइयों से खौफ़ तुझको
सोच आया था अकेला ग़म न कर।

मौत तो  आनी है  सबको एक दिन
हमसफ़र इसको बना ले ग़म न कर।

रिश्ते नाते रूप दौलत से मोहब्ब्त
छोड़,ये अब हैं पराये ग़म न कर।

कर मदद बेलौस होकर दूसरों  की
बदले में देगा ख़ुदा कुछ ग़म न कर।

ग़म ख़ुशी हैं एक सिक्के के दो पहलू
मुसकुराकर कर ख़ुशामद ग़म न कर।

ज़िस्म का भी हक़ कहाँ है रूह पर
साथ न दें तेरे  अपने  ग़म  न  कर।
                  ।। अर्चना द्विवेदी।।            

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