जूझने के हौसले को कम न कर
उम्र तेरी ढल रही है ग़म न कर।
ये तेरी पेशानी की गहरी लकीरें
है तज़ुर्बे ए शख़्सियत तू गम न कर।
याद करके माज़ी को अफ़सोस क्यूँ है
आज तो ख़ुशियाँ मना ले ग़म न कर।
है अगर तन्हाइयों से खौफ़ तुझको
सोच आया था अकेला ग़म न कर।
मौत तो आनी है सबको एक दिन
हमसफ़र इसको बना ले ग़म न कर।
रिश्ते नाते रूप दौलत से मोहब्ब्त
छोड़,ये अब हैं पराये ग़म न कर।
कर मदद बेलौस होकर दूसरों की
बदले में देगा ख़ुदा कुछ ग़म न कर।
ग़म ख़ुशी हैं एक सिक्के के दो पहलू
मुसकुराकर कर ख़ुशामद ग़म न कर।
ज़िस्म का भी हक़ कहाँ है रूह पर
साथ न दें तेरे अपने ग़म न कर।
।। अर्चना द्विवेदी।।
Very good...
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