नहीं काम की वो सुंदरता,
रंग लगा हो उथलेपन का।
व्यर्थ है वो सारी आकुलता,
जिसमें मर्म न अपनेपन का।
अर्थ न कोई प्रेम भाव का,
कवच चढ़ी हो नफ़रत की।
नहीं मिलेगी उसको मंज़िल,
चाह जिसे हो ग़फ़लत की।।
क्या करना इस सुंदर तन का,
लुभा सके जो केवल ही तन।
मन से मन का तालमेल हो,
तभी सफल होगा ये जीवन।।
कल न होगा तन ये सुंदर,
पर सुंदर मन साथ रहेगा।
एकाकीपन का बन साथी,
अंतिम क्षण तक साथ चलेगा।।
।। अर्चना द्विवेदी।।
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ReplyDeleteधन्यवाद बसन्त भैया कविता को इतना स्नेह और सम्मान देने के लिए
ReplyDeletenice composition!
ReplyDeletesoch ho jiski gaflat ki- try it
Thanks alot
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