अद्भुत शिल्पकार है ईश्वर...
प्रकृति रूप है विविध सजाया।
छः ऋतुओं ने क्रमशः आकर,
स्रष्टि सृजन अनमोल बनाया।।
ज्येष्ठ मास की असहय गर्मी,
ताप प्रचंड गरम लू देती ।
दिवस हों लंबे अति लघु रातें,
सूर्य सुधा सम द्रव पी लेती।।
चहुँ दिशाएँ तपती रहती,
चकवा-चकवी प्यासे फिरते।
सूखे तरुवर, कूप, लताएँ,
पथिक राह में जलते तपते।।
नीड़ में छिपकर पक्षी बैठे ,
पशुओं को तरु छाया भाये।
धनिक चले शिमला,मंसूरी,
दीन खुले नभ में सो जाए।।
छाया तरस रही छाया को,
आकुल फिरते हैं सब प्राणी।
पड़ी फुहारें जब बारिश की ,
मन महके पा सोंधी माटी ।।
अति दुखदायक है ये मौसम,
प्रकृति लगे नीरस सुनसान।
अधिक ताप से अच्छी वर्षा,
नवल सृष्टि का एक वरदान।।
दुःख-सुख आते जाते रहते,
बन प्रेरणा हमें शक्ति देती।
मत घबराना कष्ट-दुःखों से,
तपती धूप ये हमसे कहती।।
(अर्चना द्विवेदी)
फ़ोटो:साभार गूगल
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Nice poem dear
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