Saturday, 1 June 2019

उफ़!ये गर्मी

  

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अद्भुत  शिल्पकार  है  ईश्वर...
प्रकृति रूप है विविध सजाया।
छः  ऋतुओं ने  क्रमशः आकर,
स्रष्टि  सृजन  अनमोल बनाया।।

ज्येष्ठ मास की असहय गर्मी,
ताप  प्रचंड   गरम  लू   देती ।
दिवस हों लंबे अति लघु रातें,
सूर्य सुधा सम द्रव  पी लेती।।

चहुँ   दिशाएँ  तपती  रहती,
चकवा-चकवी प्यासे फिरते।
सूखे  तरुवर,  कूप,  लताएँ,
पथिक राह में जलते  तपते।।

नीड़ में छिपकर पक्षी बैठे ,
पशुओं को तरु छाया भाये।
धनिक चले शिमला,मंसूरी,
दीन खुले नभ में सो जाए।।

छाया तरस  रही छाया  को,
आकुल फिरते हैं सब प्राणी।
पड़ी फुहारें जब बारिश की ,
मन महके पा सोंधी माटी ।।

अति दुखदायक है ये मौसम,
प्रकृति लगे  नीरस  सुनसान।
अधिक ताप से  अच्छी वर्षा,
नवल सृष्टि का  एक वरदान।।

दुःख-सुख आते जाते रहते,
बन प्रेरणा हमें शक्ति  देती।
मत घबराना कष्ट-दुःखों से,
तपती धूप ये हमसे कहती।।
                        (अर्चना द्विवेदी)
फ़ोटो:साभार गूगल

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