
दीप पंक्तियों में सज धज कर
मन ही मन इठलायें.....
कितनी सुखद मनोहर बेला
सिय प्रभु अवध में आये।।
तन मन सबके हर्षित पुलकित,
पावन घड़ी सुमंगल आज ।
सजी दुल्हन सी देव अयोध्या ,
पूर्ण हुआ शापित वनवास।।
निरख रहीं ममता प्रिय छवि को
कौशल पति हितकारी की।
कंचन कोमल काया दमकी ,
जनक सुता सुकुमारी की ।।
झर झर अश्रु बहे उर्मि के ,
देख लखन प्रीतम को पास।
उर अंतस में हुई रोशनी ,
कोटि दीप दृग जलते आज।।
द्वार सजे तोरण हो उत्सुक,
आँगन खिलती रंग रंगोली।
सुख वैभव ऐश्वर्य संग में ,
चढ़कर आती लक्ष्मी डोली।।
आओ मिल जुल दीप जलाएं,
द्वेष कलुष का तम मिट जाए।
सत्य राम, सुंदरता सीता ,
बन प्रतीक कौशल पुर आएं।।
प्रथम दीप वीरों की ख़ातिर,
दूजा माँ के चिर वंदन में।
सजे दिवाली,खिले दिवाली,
दीप जले फिर अन्तर्मन में।।
।।अर्चना द्विवेदी।।
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