सुनो प्रियतम कि अब तुम सिर्फ़ मेरे सिर्फ़ मेरे हो,
अँधेरी काली रातों में सघन सुंदर सबेरे हो।
मेरी बिंदिया,मेरी चूड़ी है कंगन में खनक तुमसे,
होंठ लाली पाँव बिछुआ है वेणी में लचक तुमसे।
महक जाती मेरी साँसे बस तेरे पास होने से,
कभी लगता ये जग सूना लगे बाहों में घेरे हो।।
रखूँ उपवास,व्रत कितने कि जन्मों तक तुम्हें पाऊँ,
त्याग दूँ अन्न, जल सारा तेरे हृदय में बस जाऊँ।
है आँखों में चमक तुमसे खिले मुस्कान अधरों पर,
मैं बलखाती हुई नदिया और तुम सागर गहरे हो।।
ये निर्जन वन बने मधुवन का इक प्रतिबिंब संग तेरे,
तुम्हीं साँसे,तुम्हीं धड़कन तुम्हीं खुशियों के रंग मेरे
ये पल-पल प्रेम का बढ़ना यूँ रिश्ते का संवर जाना,
मैं गुल हूँ तेरे गुलशन का और तुम भ्रमर मेरे हो ।।
टूट जाये श्वांस डोरी मगर ये डोर न टूटे,
छूट जायें सकल बंधन साथ अनमोल न छूटे।
राह के काँटे भी मुझको फूल से कोमल लगते हैं,
राम तुम हो तुम्हीं मोहन,मेरे प्रियतम घनेरे हो।।
अँधेरी काली रातों में सघन सुंदर सबेरे हो....
।।अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो साभार-गूगल
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