Saturday, 12 October 2019

तुम पर गीत मैं लिखूँ


सोचती हूँ आज तुम पर गीत मैं  लिखूँ,
तुम हो हृदय के सच्चे मनमीत मैं लिखूँ।
रस छंद अलंकारों से श्रृंगार खूब  करूँ ,
धुन नई नवल ताल सच्ची प्रीत मैं लिखूँ।।

चंदा सा  शीतल  तेरा  व्यवहार  मैं  लिखूँ ,
सूरज सा प्रखर जिन्दगी का सार मैं  लिखूँ।
पर्वत सा  अटल धैर्य उर  लहरों सी  उमंगे ,
सारे उदधि से गहरा तेरा प्यार  मैं  लिखूँ।।


संजीवनी से दृग का  प्रतिमान  मैं  लिखूँ,
दीपक की रोशनी सा तुम्हें जान मैं लिखूँ।
वाणी से  बरसती  हुई  रसधार  सुधा की ,
मरु की तपिश में बूँद का वरदान  मैं लिखूँ।।

गर्मी की दुपहरी की सुखद छाँव मैं लिखूँ,
खुशियों में थिरकते हुए दो पाँव मैं लिखूँ।
तुम हो कदम्ब  डार मैं  लिपटी  हुई लता ,
सब जीतकर भी हारने  का दाँव मैं लिखूँ।।

तीरथ से  पावन  उर  का उद्गार मैं  लिखूँ ,
वृषभानु की लली का तुम्हें प्यार मैं लिखूँ ।
उपमान फीके  पड़ गये  पाऊँ  नया  कहाँ ,
जीवन के हो अनमोल  से उपहार मैं लिखूँ।।
                                                   ।।अर्चना द्विवेदी।।

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