सीखो पर्वत सा तुम उठना ,
यदि मंजिल तेरी चाहों में ।
बन अडिग अटल तुम डटे रहो,
पल पल प्रतिकूल हवाओं में ।
सीपों से बिखरे मोती हों,
उल्लास की लहरें अंदर हों।
अभिमान की रेखा छू न सके ,
धीरज का अगम समंदर हो ।
सुख दुख का संगम जीवन है,
खुशबू से महकता उपवन है।
जीवन कितना भी छोटा हो,
पर सुरभित दिव्य सुमन है ।
मंजिल की डगर मुश्किल हो भले
चलते जाना रुकना न कहीं
नवजीवन की एक बूंद बनो
नदियाँ देती संदेश यही
सोने चांदी से कोख भरी
गंगा यमुना वक्षस्थल में
तूफ़ां कंपन बिजली हो गिरी
तुम धैर्य धरो अंतस्थल में
पर्वत नदियाँ धरती सागर ,
उर में उमंग भर देते हैं।
मन में वे नई चेतना से ,
उल्लास नया कर देते हैं।।।
Bahut shubhkamnaye tumhe!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपको
DeleteBahoot sunder lajawab
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteNice creative thoughts.
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद आपको
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