Saturday, 25 May 2019

आहों से भरी सिसकी सुनकर




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विवाह हमारे सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग हैं जो कि उत्सव और खुशियों का प्रतीक है।हर लड़की के जीवन की नई शुरुआत होती है।परंतु आदिकाल से चली आ रही दहेज़ जैसी सामाजिक कुरीति ने,धन के लालच,लोभ ने जाने कितनी ही बेटियों को एक लाचार पिता माता से छीन लिया है।यही कारण है कि आज भी निर्धन पिता दहेज़ के आगे बेबस और मौन है।तो क्यों न हम आज से ही दहेज़ लेने और देने दोनों का विरोध करें और अपनी प्रिय बेटियों को बचाने का संकल्प करें...


आहों से भरी सिसकी सुनकर,

मेरी  आँखें  भर  आयी   हैं ।
लाचार  पिता -माता ने  फिर,
प्रिय  बेटी  आज गंवाई  है ।।

मेहँदी का  रंग  न  छूटा  था,

कोमल,नाजुक सी हथेली की।
घर-बार  बेचकर  अपनों   ने,
क़िस्मत में  लिखी हवेली थी।।

गुण -रूप ,त्याग  की  देवी  ने ,

छुप-छुप कर रोना सीख लिया।
धन , वैभव  और   दिखावे  ने ,
मानवता  चकना चूर  किया ।।

वो ममता की पावन  प्रतिमा,

कितनी  तड़पी तरसी  होगी।
खल रूप निशाचर मानव को,
आई  न  तनिक  दया  होगी।।

जो स्वप्न सजा लाखों मन में,

पीहर  के  घर  में  आई   थी।
बिखरे  सपने, आशा टूटी वो,
ज्वाला में  आज  समाई  थी।।

अब झुलस रही धन,लिप्सा के ,

दावानल में  घर  की  कलियाँ।
हो  रही  धरा वीरान  सी  अब,
बिन  लक्ष्मी  के  सूनी गलियाँ।।

इस दहेज  रूपी  सुरारि  ने,

आदर्शों  का  संहार  किया।
बेटी  चहके  न   आँगन  में ,
हर पिता ने यही प्रयास किया।।

ये सोच के मन कंप उठता है,

शायद  कल  मेरी  बारी   हो।
मेरी नाज़ुक कली सी बेटी पर,
चलती  दहेज़ की  आरी   हो।।

अब समय नहीं वो दूर रहा,

जब  बेटी  गोद न  खेलेगी।
न मस्तक  पर  होगा  चंदन,
शहनाई  द्वार  न    गूँजेगी ।।

सुन  लो  दहेज  लेने   वालों,

इस तांडव का अब अंत करो।
निर्धन कुटुम्ब,लाचार बहु की,
बेबस  आहों  से  डरा  करो ।।

जब तक दहेज के दानव का ,

होगा  निर्मम    संहार   नहीं।
अवनी से लेकर अम्बर  तक,
होगा  नर  का  उद्धार  नहीं।।
                                   ।।अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो:साभार गूगल

Thursday, 16 May 2019

पापा मैं पराई नहीं


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अक़्सर लोगों को कहते सुना है कि बेटे माँ के और बेटियाँ पिता के क़रीब ज्यादा होती हैं।इस बात का साक्ष्य मैं स्वयं हूँ कि मैं भी अपने पापा के सबसे क़रीब और लाडली बेटी हूँ।जो काम माँ के होते हैं वो सब मेरे पापा ने मेरे लिए किया..अपनी अल्प सी कमाई में मेरी पसंद की फ्रॉक लेना,बालों में कंघी करना,स्कूल के लिए तैयार करना और मेरे बेहतर भविष्य के लिये जो सम्भव हो सका सब किया।एक बेटे से बढ़कर प्यार और दुलार किया।आज मेरे पापा को मेरी जरूरत है पर इस समाज की कुछ रीति-रिवाजों ने मुझे आपसे पराया कर दिया है।फिर भी मुझसे जितना हो सकेगा उतना हरसंभव करूँगी मेरे प्रिय पापा.....मैं हर पल आपके साथ हूँ



माना दुनिया की नज़रों में,

मैं हुई पराई तुमसे हूँ.......।
इन रस्मों के बंधन में घिरी,
अब कोसों दूर मैं तुमसे हूँ।।

मैं बेटी थी........मैं बेटी हूँ,

तेरे आँगन की फुलवारी हूँ।
तेरे स्नेह ,त्याग की बूंदों से,
सिंचित महकी सी क्यारी हूँ।।

बेटों से  ज्यादा  प्यार  मेरी,

झोली   में  तुमने  डाला  है।
तुम त्याग,स्नेह की मूरत हो,
नाज़ो से  मुझको  पाला है।।

माँ की ममता सा स्नेह लिए,

बचपन में झुलाया  बाहों में।
खुद राह चुन लिए शूल भरे,
पर फूल मिले मुझे राहों  में।।

बेटी-बेटों  के  अंतर  का ,

कभी भेद नहीं  जाना मैंने।
है गर्व मुझे इस जीवन पर
तुझे पिता रूप पाया  मैंने।।,

ये सच है  एक पिता  बेटी ,

का रिश्ता अनुपम होता है।
होती  बेटी  लाचार  बहुत,
मजबूत हृदय जब रोता है।।

कुलदीप नहीं तेरे वंश का मैं,

पर  इतना   वादा  तुझसे  है।
हर कठिन राह में साथ मेरा,
पाओगे  इरादा खुद  से  है।।

हे प्रभु! इतनी विनती  मेरी,

स्वीकार हृदय से कर लेना।
हर जन्म में गोद यही पाऊँ,
अधिकार पुत्र का दे  देना।।

                        (अर्चना द्विवेदी)

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Saturday, 11 May 2019

माँ


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माँ ईश्वर का दिया अनुपम और अनमोल उपहार है।माँ की गोद मे स्वर्ग बसता है।माँ के अनुपम प्रेम को शब्दों में लिखना नामुमकिन है फिर भी मैंने अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोया है।उम्मीद है आप सबको पसन्द आएगी.....माँ को समर्पित

जिसके एहसान का मोल कोई नहीं
माँ है अनमोल माँ जैसी कोई नहीं

अपनी खुशियों को खुशियाँ समझती नहीं
 आँखें पढ़ लो जुबां से वो कहती नहीं

सबके सपने  सजाती है जो रात  दिन,
ऐसी कोमल सी माँ सबको मिलती नहीं।।

 माँ की ममता को ठुकरा के जाना नहीं
माँ के बिन जिंदगी में ठिकाना नहीं ।

देवता भी तरसते हैं जिस प्यार  को,
ऐसे आँचल को ठुकरा के जाना नहीं ।

माँ की सूरत में राधा नजर आएगी,
माँ की मूरत में दुर्गा संवर आएगी।

माँ की इज्जत करो अपनी दौलत समझ,
तेरे कदमों में खुशियां बिखर  जाएगी।।

 माँ के बिन सारी खुशियाँ अधूरी लगे ,
 हर कदम हर राह पर  माँ जरूरी लगे ।

माँ की ममता का एहसास इतना सुखद ,
देवता  भी मनुज   रूप  धरने   लगे ।।

                 ।।अर्चना द्विवेदी।।
फोटो:साभार गूगल

Thursday, 2 May 2019

मजदूर हैं हम





मत कहना कि मजबूर हैं हम,
हाँ सच है कि मजदूर हैं हम।
सजते हैं नित्य नए सपने बस,
सुख-सुविधाओं से दूर हैं हम।।

दिन रात परिश्रम करते हैं,

हम झोपड़ियों में रहते हैं ।
महलों को देकर रूप नए,
संतोष हृदय में रखते है।।

हम दंश झेलकर मौसम के,

विपदा में भी मुस्काते हैं 
रूखी सूखी रोटी न मिले,
तो खाली पेट सो जाते हैं।।

ये क्षुधा उदर की है निष्ठुर ,

दिन रात परिश्रम हम करते।
वो मेहनत भी क्या मेहनत है??
जो शिशुओं के पेट नहीं भरते।।

हमें तपिश धूप की मिलती है,

तुम्हें शीतल ठंडी छाँव मिले।
हम सेवक हैं तुम स्वामी हो,
इस रिश्ते को कुछ मान मिले।।

इस अर्थ विषमता ने हमको,

कितना बेबस, लाचार किया।
स्वार्थी बनकर हर रिश्तों ने,
मुश्किल में दामन छुड़ा लिया।।

सुख,वैभव के सामान नहीं,

हम स्वर्ग बनाते छप्पर में।
हमसे न कोई दुर्भाव करो,
हम जान डालते पत्थर में।।

अभाव भरा जीवन जीते,

तेरे आँखों का आँसू पीकर।
कुचले जाते फुटपाथ वही,
जहाँ स्वप्न सजाते हम मिलकर।।

तुम पर्व मना कर सालों से,

हमें दया का पात्र बनाते हो।
बस छीन रहे सम्मान मेरा,
और झूठे दंभ दिखाते हो।।

सुन लो सुख भोगी इंसानों,

हम भी ईश्वर की संतानें।
जब लहू,रूप सब एक ही है,
तो अर्थ विषमता क्यों ठानें??
                           ।।अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो:साभार गूगल