जैसे दुल्हन के माथे पर,सोहे लाल सुनहरी बिंदी
वैसे ही हर एक जीवन का,रूप सँवारे भाषा हिंदी।।
ये संस्कृति की संरक्षक,वाहक अनमोल धरोहर है
गंगा सी निर्मल पावन व सुंदर ज्ञान सरोवर है।।
देश की उन्नति और प्रगति की,एकमात्र पहचान है
प्रेम,स्नेह,अपनत्व निहित,भारत माता की शान है।।
जकड़ा था जब भारत,अंग्रेजों की क्रूर गुलामी से
जाति, धर्म का भेद मिटाकर,बचा लिया नाक़ामी से।।
विविध बोलियों की जननी,हिंदी भाषा कहलाती है
हो जाती है पंगु संस्कृति,बिन भाषा बतलाती है।।
तुलसी, प्रेमचंद, खुसरो, महादेवी ने अपनाया
विश्व पटल पर निज कृतियों,से इसका मान बढ़ाया।।
माँ बनकर ये हिंदी भाषा,हर कर्तव्य निभाती है
भूलो मत उपकार,छोड़कर आँचल ज्ञान सिखाती है।।
छोड़ विदेशी भाषा को,अपना लो अपनी भाषा
मिले राष्ट्र सम्मान और पूरी हो सबकी आशा।।
अपनी बोली, अपनी भाषा ,में सम्मान निहित है
निज भाषा बिन,पतन देश का होता सर्वविदित है।।
।।अर्चना द्विवेदी।।
Very nice keep it up....
ReplyDeleteati sunder hindi
ReplyDeleteबहुत सुमधुर
ReplyDeleteसुमधुर
ReplyDeleteधन्यवाद आप सभी को
ReplyDeletehindi divas ka antarrashtriya swaroop kasunder avlokan
ReplyDeleteअतिसुन्दर दी
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