Monday, 25 February 2019

भारत माँ

माँ छोड़ करुण वेदना आज
रण भेरी की हुंकार भर।
बेटी में रूप धरो दुर्गा
तुम दुश्मन का संहार करो।।

अब बहुत हुआ ममता दुलार

सब पूत सपूत नहीं होते।
सिंहों के वेश में हैं गीदड़
सब बब्बर शेर नहीं होते।।

इतिहास साक्षी है अपना

जब जब तुम पर विपदा आयी।
लक्ष्मीबाई, काली बनकर
नारी की महिमा दिखलायी।।

अब द्वार देहरी के लांघो

घूंघट के पट खुल जाने दो।
चूड़ी कंगन का मोह नहीं
बस सीमा पर मुझे जाने दो।।

नारी नर से कम नहीं रही

ये दुनिया को दिखला देंगे।
हम एक शीश के बदले में
सौ शीश काटकर ला देंगे।।
                   (अर्चना द्विवेदी)
फ़ोटो:साभार गूगल

9 comments:

  1. अतुलनीय रचना

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  2. प्रिय अर्चना
    बहुत सुंदर भाव और शिल्प, आशीर्वाद

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    1. हृदय की असीम गहराइयों से आपको आभार एवम कोटिशः अभिवादन

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