
प्रेम का इज़हार कर लूं.....
बन के बदली बरस जाऊँ,
तप्त मरु को सींच आऊँ।
मेघ का कर लूँ वरण मैं....
अश्रु का श्रृंगार कर लूँ।।
मन में पुष्पित इत्र महके,
मलय मद्धिम तन में बहके।
पाश का आभास कर मैं....
ज़िन्दगी गुलज़ार कर लूँ।।
प्रेम समझे मूक भाषा,
शब्द भरते हैं निराशा।
भूलकर सब विरह वेदन मैं....
गुलशन में बहार कर लूँ।।
लोक लज्जा त्यागना सब,
अंक में भरना मुझे जब।
प्रीत सच्ची सीख लूँ मैं.....
स्वयं पर उपकार कर लूं।।
श्वांसों में स्वप्न पराग लिए,
नयनों में राग-विहाग लिए।
तू मधुर गीत सुर संगम मैं....
हर दिवस त्योहार कर लूँ।।
कौमुदी निरखे शशि को,
ज्यूँ निहारे क्षिति रवि को।
तू पतिंगा दीप बन मैं....
प्रेम का विस्तार कर लूँ।।
मैं आदि हूँ हो अन्त तुम,
मैं प्रिय तेरी प्रियतम हो तुम।
तू है नहीं मेरा कहीं मैं.....
कैसे ये स्वीकार कर लूँ।।
( अर्चना द्विवेदी)
फ़ोटो:साभार गूगल
अति सुंदर रचना।
ReplyDeletePremrs
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