जैसे दुल्हन के माथे पर,सोहे लाल सुनहरी बिंदी वैसे ही हर एक जीवन का,रूप सँवारे भाषा हिंदी।। ये संस्कृति की संरक्षक,वाहक अनमोल धरोहर है गंगा सी निर्मल पावन व सुंदर ज्ञान सरोवर है।। देश की उन्नति और प्रगति की,एकमात्र पहचान है प्रेम,स्नेह,अपनत्व निहित,भारत माता की शान है।। जकड़ा था जब भारत,अंग्रेजों की क्रूर गुलामी से जाति, धर्म का भेद मिटाकर,बचा लिया नाक़ामी से।।
धैर्य असीमित,हिम्मत अद्भुत हृदय संजोए रहते हम गिरकर उठना,आगे बढ़ना लक्ष्य प्राप्ति दम भरते हम चूक गए थोड़ी दूरी से इसका हमें मलाल नहीं असफलता से हार मान लें उठता कोई सवाल नहीं।
शिक्षक वो आभूषण जिसका कोई मोल नहीं होता धारण कर ले जो जीवन में भाग्य नहीं उसका सोता। संचित ज्ञान से सिंचित करता अमिट स्नेह बरसाता ज्ञान के सागर में नहला यह जीवन पार लगाता। स्वयं दीप बन कर जलता पर हमें प्रकाशित करता उठा धूल से बना फूल , नव सुरभि सुवासित करता।
अल्फ़ाज़ बूढ़ी माँ के अब लब पे ठहर गए, आते नहीं क्यूँ लौटकर , जो हैं शहर गए। आया शहर से ख़त तो थी रुख़सार पर नमी क्या ख़ैरियत से हो तुम ? जाने किधर गए। मेरी परवरिश में कोई कमी रह गयी थी क्या पूछा न हाल-ए -दिल मेरा जबसे शहर गए। आँचल की मेरे छाँव में तुम , दिन रात थे महफ़ूज़ मगर इस शौक-ए-आलम से,तेरे जज़्बात मर गए।