ढाल बनेगी हर बेटी हम
ऐसा बिगुल बजायेंगे
कामी,हवसी,पापी,वहशी
सबको सबक़ सिखायेंगे
कोमल मन वात्सल्य भरा पर
रौद्र रूप हो काली सा
अगर अस्मिता ख़तरे में तो
हो प्रहार बलशाली सा
सुप्त चेतना को जागृत कर
सोयी शक्ति जगायेंगे
प्रगति नहीं करता वो अंचल
जहाँ सिसकती नारी हो।
घर-आँगन सड़कों,गलियों में
फैली बस लाचारी हो।।
निडर जियेंगी जहाँ बेटियाँ
हम वह देश बनायेंगे
सुनो बेटियों जंग लड़ो ख़ुद
नव इतिहास बना डालो
नज़र शिकारी की तुम पर है
सिंह भुजाओं में पालो
हो संहार दानवों का तब
बेटी दिवस मनायेंगे।।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या
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