Friday, 8 May 2020

कोई कहता


कोई कहता मुझमें शीतल
चंदा जैसी छाया है।
कोई कहता मुझमें दिनकर
जैसा ताप समाया है।।

किसी में सरिता सी चंचलता
जलनिधि सी गहराई है।
धैर्य धरा सा है अंतस में
अम्बर सी ऊँचाई है।।

कोई कहता मैं ख़ुशबू हूँ
फ़ूलों सी सुंदरता है।
काक नहीं पिक जैसी वाणी
जिसमें बहुत सरसता है।।

सोच रहे सब ही अंतस में
मुझसा कोई श्रेष्ठ नहीं।
सारी दुनिया लघु से लघु है
कोई मुझसे ज्येष्ठ नहीं।।

धरती,अम्बर,चाँद, दिवाकर
का जीवन परमार्थ है।
पर ये मानव बहुत अनूठा
हृदय भरे बस स्वार्थ है।।
     अर्चना द्विवेदी
     अयोध्या

No comments:

Post a Comment