द्वारे ख़ुशियाँ करें प्रतीक्षा
भूलें हम सब बीती बातें।
नये वर्ष का नवल सवेरा
कर दें विस्मृत दुख की रातें।।
छूट गये कुछ मित्र पुराने
नए अपरिचित होंगे अपने।
टूट गये कुछ स्वप्न सुनहरे
सजेंगे फिर से नूतन सपने।।
चादर घनी घिरी कुहरे की
रूप धरा का बिखरा बिखरा।
पर रिश्तों की गरमाहट से
जन जन का है चेहरा निखरा।।
बहुत से खट्टे-मीठे अनुभव
मिले पुराने वर्ष से हमको।
मिलेंगी प्रतिपल नव सौगातें
नये साल का हर्ष है सबको।।
आज नया कल हुआ पुराना
अटल नियम है यही प्रकृति का
नया वर्ष जो आज सुखद है
कल हिस्सा होगा स्मृति का।।
क्या कृत्रिम सपनों में जीना
बीती बातों का क्या रोना।
मूल मंत्र जीवन का यही है
वर्तमान में ख़ुशी संजोना।।
।। अर्चना द्विवेदी ।।
अयोध्या
कृत्रिम सपनों में क्या जीना ??....वर्तमान में खुशी सजोना... क्या कहने मैम .. नूतन वर्ष मंगलमय हो।
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