नवल वर्ष के नवल दिवस पर,
हर्ष का दीप जलाएं मिलकर।
ऋतु ने ओढ़ लिया नव चादर,
प्रकृति का नव सौंदर्य उजागर।।
वसुधा कर ली षोडश श्रृंगार ,
छवि दिव्य अलौकिक है अपार।
स्नेहिल उर अतिशय प्रीत भरे ,
बन परम पुरुष का प्रणय द्वार।।
चहुँ ओर सजी सरसो पीली,
अलि गुंजन मन उल्लास भरें।
सुन मधुर कोकिला की बोली ,
विरहित मन का संताप हरे।।
भर ताप ग्रीष्म का मधुर मिलन ,
किसका यह अनुपम सृष्टि सृजन।
स्वर्णिम किरणों से सजे आम ,
हो व्यक्त रूप अतुलित ललाम।।
खेतों में महकती पकी फसल,
भरती आशा उल्लास नवल।
नव दुर्गा पूजन घर घर में..,
हो शांति भक्ति सबके उर में।।
स्वागत नव वर्ष का हम कर लें ,
आपस की कटुता कम कर लें।
यह संस्कृति है अनमोल धरोहर,
संकल्प नवल मन में भर लें।।
।।अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो:साभार गूगल
Nice
ReplyDeleteअद्वितीय रचना
ReplyDeleteVery nice.... We appreciate your thoughts and the way you bind the word together to make them more beautiful...
ReplyDeleteThanks Himanshu ji
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