Friday, 8 March 2019

मैं नारी हूँ

नारी की महिमा आज सुनो,
मैं भी एक कोमल नारी हूँ।
तन मन दोनों ही पावन हैं ,
प्रियतम को अतिशय प्यारी हूँ।

जीवन के कुछ पल ऐसे थे,
महसूस हुआ बेमोल हूँ मैं।
कुछ पथिक मिले अनजाने से,
एहसास हुआ अनमोल हूँ मैं।

उषा की पहली किरण हूँ मैं,
दुःख दूर करूँ मुस्कानों से।
हर स्वप्न करूँ पूरे सबके,
विस्तृत नभ के अरमानों से।

माँ, बेटी,बहन,संगिनी हूँ,
हैं रूप कई इस नारी के।
हर रिश्तों में नवजीवन भर,
पुष्पित हो लूँ फुलवारी में।

हूँ अबला पर कमजोर नहीं..,
माँ दुर्गा,लक्ष्मी, काली हूँ..।
एक सफ़ल पुरुष की नींव हूँ मैं,
होठों पे खिली सी लाली हूँ..।।

अन्नपूर्णा हूँ, वीरांगना हूँ...,
मैं वीर पुत्र की जननी हूँ...।
मैं शक्ति हूँ, प्रभु भक्ति हूँ...,
विष्णु की हस्त कुमुदिनी हूँ..।

निश्छल है हृदय सावित्री सा,
सीता सा पतिव्रत करती हूँ।
जीजाबाई की कोख मेरी..,
भामती का तपबल रखती हूँ।।

संकोच,लाज,और शील,स्नेह,
ये सब नारी के अलंकार...।
न समझो रमणी,भोग्या तुम ,
है विष समान इनका प्रहार ।।

बेटी दहेज से हो पीड़ित ,
आज़ादी का अधिकार नहीं।
पैरों में बेड़ियाँ हों जकड़ी ,
ये नारी को स्वीकार नहीं ।।

मेरा एक निवेदन हर नर से,
मत नारी का अपमान करो।
एक रथ के दो पहिये हैं ये..,
इस धुरी का तुम सम्मान करो.।

नारी विहीन गर हुई धरा ,
सृष्टि का अंत सुनिश्चित है ।
हर कण में सूनापन होगा ,
ईश्वर ने किया ये इंगित है।।

नर वृहद वृक्ष,नारी छाया ,
एक दूजे बिना अधूरे हैं..।
नर योग पुरुष,नारी माया,
जब साथ रहें तब पूरे हैं..।।
                          ।।अर्चना द्विवेदी।।
फ़ोटो:साभार गूगल

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