Friday, 25 February 2022

दिल की बस्ती कहाँ

 दिल की बस्ती कहाँ बसाई

दुनिया में दिलवालों ने।

थककर चूर हुये हैं नैना

शोर किया पग छालों ने।।


देखा है क्या उनको तुमने

मंज़िल के दरवाज़े पर।

जिनको अपना मीत बनाया

ख़्वाबों और ख़यालों ने।।


कुछ पैसों में बेच रहे हैं

नन्हें हाथ खिलौनों को।

मजबूरी की राह दिखाई

शायद इन्हें निवालों ने।।


एक कमाता,दस खाते थे

बहुत पुरानी बात हुई।

अब तो सबको उलझाया है

अगणित व्यर्थ बवालों ने।।


सारी उम्र कमाकर जिसने

पाला अपने बच्चों को।

किया करो कुछ,किया नहीं कुछ

आहत किया सवालों ने।।


वादों का इक कासा लेकर

भीख वोट की माँग रहे।

कितना ही निर्लज़्ज़ बनाया

राजनीति की चालों ने।।


घूम रहे कितने टोली में

कपट छुपाये झोली में।

भेष बदलकर खूब छला है

सिंहों बीच श्रृंगालों ने।।


ख़ुद से ज्यादा और किसी पर

कभी भरोसा मत करना।

डस कर जान लिया कितनों की

आस्तीन के ब्यालों ने।।

                    अर्चना द्विवेदी

                        25-02-22

Wednesday, 19 January 2022

खिलेंगे फूल

 खिलेंगे फूल मुहब्बत के गर चमन के लिये,

न कोई हादसा गुजरे यहाँ अमन के लिये।


भटक रही है जो गलियों में इक निवाले को,

कहाँ से लाएगी कपड़े वो फिर बदन के लिये।


नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं,

लकीरें मायने रखती नहीं लगन के लिये।


गुरुर है जिसे हवेलियों की शौक़त पर,

वो मुनासिब नहीं है यार अंजुमन के लिये।


मिली है चार दिन की ज़िंदगी न ज़ाया कर,

बहा दे खून जवानी ज़मी वतन के लिये।


ज़रा सा देखिये मायूसियाँ निगाहों की,

कि जिनके लाल तरसते रहे कफ़न के लिये।

                अर्चना द्विवेदी

                    अयोध्या

                     19/01/22

youtube.com/archanadwivedi

Monday, 17 January 2022

जीवन अनुभव

 जीवन में अनुभव हुआ,सचमुच है भगवान।

समय बुरा हो या भला,करना नित गुणगान।।


दुनिया रखती याद है,सरस,मृदुल व्यवहार

महँगे जूते,घर बड़ा,नहीं दिलाते मान।।


खींच रहे हैं लोग सब,अपनी ही तस्वीर।

बिखर गया है टूटकर,कितना यह इंसान।।


देवों से भी श्रेष्ठ है,गुरु का निर्मल रूप।

जो पत्थर पारस करे,मूरख को विद्वान।।


बरगद गुमसुम जोहता,परदेसी की राह।

गलियाँ कहती लौट आ,ओ शहरी नादान।।

                   अर्चना द्विवेदी

                अयोध्या उत्तरप्रदेश

                   

https://youtube.com/c/ArchanaDwivedi

Sunday, 4 October 2020

मुक्तक



जहाँ  थे  पूजते  दुर्गा ,वहीं  अब  बेटियाँ  रोतीं,
दुःशासन चीर को खींचे,सभा में अस्मिता खोतीं।
सँभल जाओ,अभी भी वक़्त है,ऐ!मानवी पशुओं,
दिखे कमजोर जो तुमको,सदा अबला नहीं होतीं।।
               अर्चना द्विवेदी
                    अयोध्या

Wednesday, 30 September 2020

ढाल बनेगी हर बेटी हम

 ढाल बनेगी हर बेटी हम

ऐसा बिगुल बजायेंगे

कामी,हवसी,पापी,वहशी

सबको सबक़ सिखायेंगे


कोमल मन वात्सल्य भरा पर

रौद्र रूप हो काली सा

अगर अस्मिता ख़तरे में तो 

हो प्रहार बलशाली सा

सुप्त चेतना को जागृत कर

सोयी शक्ति जगायेंगे


प्रगति नहीं करता वो अंचल

जहाँ सिसकती नारी हो।

घर-आँगन सड़कों,गलियों में

फैली बस लाचारी हो।।

निडर जियेंगी जहाँ बेटियाँ

हम वह देश बनायेंगे


सुनो बेटियों जंग लड़ो ख़ुद 

नव इतिहास बना डालो

नज़र शिकारी की तुम पर है

सिंह भुजाओं में पालो

हो संहार दानवों का तब

बेटी दिवस मनायेंगे।।

अर्चना द्विवेदी 

      अयोध्या