जीवन में अनुभव हुआ,सचमुच है भगवान।
समय बुरा हो या भला,करना नित गुणगान।।
दुनिया रखती याद है,सरस,मृदुल व्यवहार
महँगे जूते,घर बड़ा,नहीं दिलाते मान।।
खींच रहे हैं लोग सब,अपनी ही तस्वीर।
बिखर गया है टूटकर,कितना यह इंसान।।
देवों से भी श्रेष्ठ है,गुरु का निर्मल रूप।
जो पत्थर पारस करे,मूरख को विद्वान।।
बरगद गुमसुम जोहता,परदेसी की राह।
गलियाँ कहती लौट आ,ओ शहरी नादान।।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश
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