Wednesday, 19 January 2022

खिलेंगे फूल

 खिलेंगे फूल मुहब्बत के गर चमन के लिये,

न कोई हादसा गुजरे यहाँ अमन के लिये।


भटक रही है जो गलियों में इक निवाले को,

कहाँ से लाएगी कपड़े वो फिर बदन के लिये।


नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं,

लकीरें मायने रखती नहीं लगन के लिये।


गुरुर है जिसे हवेलियों की शौक़त पर,

वो मुनासिब नहीं है यार अंजुमन के लिये।


मिली है चार दिन की ज़िंदगी न ज़ाया कर,

बहा दे खून जवानी ज़मी वतन के लिये।


ज़रा सा देखिये मायूसियाँ निगाहों की,

कि जिनके लाल तरसते रहे कफ़न के लिये।

                अर्चना द्विवेदी

                    अयोध्या

                     19/01/22

youtube.com/archanadwivedi

Monday, 17 January 2022

जीवन अनुभव

 जीवन में अनुभव हुआ,सचमुच है भगवान।

समय बुरा हो या भला,करना नित गुणगान।।


दुनिया रखती याद है,सरस,मृदुल व्यवहार

महँगे जूते,घर बड़ा,नहीं दिलाते मान।।


खींच रहे हैं लोग सब,अपनी ही तस्वीर।

बिखर गया है टूटकर,कितना यह इंसान।।


देवों से भी श्रेष्ठ है,गुरु का निर्मल रूप।

जो पत्थर पारस करे,मूरख को विद्वान।।


बरगद गुमसुम जोहता,परदेसी की राह।

गलियाँ कहती लौट आ,ओ शहरी नादान।।

                   अर्चना द्विवेदी

                अयोध्या उत्तरप्रदेश

                   

https://youtube.com/c/ArchanaDwivedi