क्या इसीलिए माँ ने जाया??
जलकर जो दुःख की ज्वाला में
सुख रूपी नीर पिलाती है।
कुछ भी खाने से पहले ही
जो पहला कौर खिलाती है।
क्यों इस ममता की मूरत का
तुमको न प्यार तनिक भाया।।
किलकारी सुनकर जो तेरी
क़िस्मत पर ही इतराती है।
ये लाल बुढ़ापे की लाठी
हर्षित हिय को बतलाती है।
ठुकराते हो उस देवी को
जिससे पाई पावन काया।।
क्यूँ दुखा रहे दिल जननी का
जो तुझ पर जान छिड़कती है।
तेरी हल्की सी सिसकी से
जो सौ-सौ बार तड़पती है।
किंचित टूटा ये बंधन तो
फिर नहीं मिलेगी ये छाया।।
संवाद विषैला क्यों माँ से
क्यूँ तिरस्कार है माते का।
हो बहुत स्वार्थी भावशून्य
जो मोल नहीं इस नाते का।
ऐश्वर्य सँजो कर क्या करना
जब साथ न हो माँ का साया।।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या
बहुत ही भावुक करने वाली पंक्तियां है। बहुत अच्छी।
ReplyDeleteआभार अनुज
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