कभी कभी जीवन में कुछ ऐसा घटित हो जाता है जिससे हमें यह अनुभव होता है कि यदि सच्चे हृदय से कोई कार्य किया जाए तो वह अवश्य पूर्ण होता है फिर चाहे वह ईश्वर को बुलाने का ही क्यों ना हो।
बात नवंबर 2004 की है मुझे और मेरे छोटे भाई को ट्रेन द्वारा घर जाना था। शाम की ट्रेन थी हम दोनों टिकट लेकर उचित स्थान देखकर डिब्बे में जाकर बैठ गए।यूँ तो हमारा मूल स्टेशन मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर था परंतु कई क्रॉसिंग के बाद ट्रेन करीब रात 7:30 बजे हमारी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर पहुंची संयोग वश वहाँ भी क्रॉसिंग थी।
सामने से आने वाली ट्रेन पहले प्लेटफार्म पर रुकी थी इसलिए ट्रेन दूसरे प्लेटफार्म पर रुकी।हमें मजबूरी वश ट्रेन के विपरीत दिशा में उतरना पड़ा।सर्दी का मौसम था कुहरे ने चारों तरफ अपनी धुँधली चादर फैला रखी थी। दूर-दूर तक रोशनी के नाम पर सिर्फ़ स्टेशन की पीली लाइट जल रही थी।घने अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था न मोबाइल,न टॉर्च कुछ भी नहीं था हमारे पास..... क्योंकि स्टेशन पर रुकने वाली गाड़ियों की संख्या बहुत कम थी इसलिए उतरने वाले यात्रियों की संख्या भी गिनी चुनी ही थी। हम दोनों ट्रेन के जाने से पहले ही बिना कुछ सोचे समझे आगे इंजन की तरफ बढ़ गए........
सच कहूँ तो हम दोनों को दिशा भ्रम हो गया था हमें यह नहीं समझ आ रहा था कि स्टेशन आगे है या पीछे।इसलिए बिना समय गंवाए आपस में खुसफुसा कर हमने आगे ही बढ़ने का निर्णय लिया और सामने टिमटिमाते केबिन के बल्ब को जो कि हमसे करीब 500 मीटर की दूरी पर था स्टेशन समझकर तेज कदमों से आगे बढ़ गए।
याद करके मन भय से काँप उठता है कि घनी अंधेरी सर्द रात जब पशु-पक्षी तक अपने- अपने घरों में दुबके हुए थे,कोहरे की घनी परत,कंपकंपाती शीतलहर में भी,किसी अनहोनी की आशंका से हम दोनों के चेहरे पर भय की बूंदे बिखर गई थीं।
कोई सहारा नहीं दिख रहा था एक उम्मीद के सिवा और वह उम्मीद थी... मेरे बजरंगबली.......
माँ अक्सर कहा करती थी कभी कोई मुसीबत हो तो वीर बजरंगी का नाम लेने से संकट दूर हो जाता है।।
मैंने अपने भाई का हाथ मजबूती से पकड़ा और कहा डरो मत-- सब अच्छा होगा सिर्फ़ बजरंगबली को याद करो और ईश्वर से मदद करने की पुकार करो।
"भूत पिशाच निकट नहीं आवै महावीर जब नाम सुनावे""यह चौपाई और तेज कदमों की चाल दोनों के सहारे हम करीब 300मीटर दूर आ गए।
बताती चलूँ कि दुर्भाग्यवश हम स्टेशन से दूर होते जा रहे थे एक पल को रुककर दोनों तरफ देखा।वहाँ से दाएं तरफ स्टेशन की लाइट दिखी और बाएं तरफ केबिन की।
भयवश मस्तिष्क काम ही नहीं कर रहा था कि हम किधर जाएं बिना समय गंवाए आसपास की आहट से बेखबर हमने आगे ही बढ़ने का निर्णय किया। तभी अचानक टॉर्च की एक तीखी रोशनी हम दोनों के चेहरे पर पड़ी।.....…..आवाज आई... कहाँ जाना है ???
हमें तो काटो खून नहीं....
अब क्या होगा?? कौन है ये ??
क्या चाहता है हमसे?? कई सवालों के बीच मुँह से सिर्फ एक आवाज़ निकली--- ....स्टेशन...
अँधेरे में न तो चेहरा दिखा ना ही कद काठी पर आवाज़ से ही अंदाज़ा हुआ कोई हट्टा कट्टा नौजवान व्यक्ति ही होगा।
"तुम दोनों ही गलत दिशा में जा रहे हो स्टेशन तो काफी पीछे छूट गया है।आओ मैं तुम दोनों को स्टेशन तक छोड़ देता हूँ " ....
उस व्यक्ति ने कहा---।
मरती क्या न करती किसी अनजाने पर यक़ीन करना ठीक तो नहीं लग रहा था, फिर भी हनुमान जी का नाम लेकर हम दोनों उसके पीछे चल दिए स्टेशन पर पहुंचकर स्टेशन मास्टर के कक्ष की ओर इशारा करके बिना कुछ बोले ही वह व्यक्ति आगे बढ़ गया।हम तो इतना डर गए थे कि उसे धन्यवाद भी ना कह सके।
वह व्यक्ति कुहरे के घने अँधेरे में कहीं गुम हो गया।।
कक्ष की ओर बढ़ते ही पापा की आवाज़ कानों में पड़ी तो ऐसा लगा मानो घण्टों की मूर्छा के बाद अचानक ही होश आया हो।
हमें फिर से अपने प्रिय पिता की छाँव मिल गयी थी जहाँ हम स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे थे।
उस घटना के बाद मुझे पूर्ण विश्वास हो गया कि जैसे सूरज,चाँद, सितारे अटल सत्य हैं वैसे ही ईश्वर का अस्तित्व भी सत्य है।
यदि ईश्वर को पूरी लगन और सच्चे हृदय से याद किया जाए तो वह हमारी सहायता करने जरूर आते हैं।
सबसे बड़ी बात कि एक पिता का सानिध्य दुनिया का सबसे सुरक्षित स्थान है जो मुझे उस दिन एहसास हुआ........😊
सुनिये youtube पर
samveg la aaveg🧨🧨
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