Saturday, 8 June 2019

अश्रुपूरित श्रद्धांजलि


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रमज़ान का पवित्र महीना,ईद का दिन जब पूरी दुनिया खुशियों के समंदर में डूबी हुई थी उसी पल भारत के शहर अलीगढ़ में एक मासूम बच्ची के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर नृशंस हत्या कर दी गयी।मन बहुत ही व्यथित और द्रवित है कि क्या हो गया है हमारे समाज को जहाँ चंद वर्षों की अबोध बेटियाँ भी असुरक्षित हैं।मेरे अश्रुपूरित शब्द उस मासूम कली को सच्ची श्रद्धांजलि हैं जो बिल्कुल निर्दोष थी.......😢😢


मासूम कली, नन्हीं सी जान के,

बचपन को पल में कुचल दिया।
दहलीज़  लाँघ   निर्ममता   की,
कोमल से तन को मसल दिया।।

क्या दोष था निश्छल आँखों का?

वहशीपन ने जिन्हें फोड़  दिया। 
किंचित सी दया न हृदय जगी..
मानवता का  संग छोड़  दिया।।

उफ़! कितनी पीड़ा-दर्द छुपा,

होगा  मासूम  के  क्रंदन   में।
हो  गया पतन  नैतिकता का,
एहसास  हुआ उस रुदन  में। 

लग जाती धूप तनिक तन को,

माँ आँचल से ढक  लेती  थी।
लगती खरोंच  बस नाम मात्र,
नयनों में स्नेह  भर देती  थी।।

कुछ पल  ममता  से दूर  हुई,

नर गिद्ध शिकारी से अंजान।
तड़पी सिसकी हर पल होगी,
नर भक्षी बने थे   वो  हैवान।।

तेज़ाब फेंक उस  गुड़िया  की,

अस्मिता को नोंच-नोंच डाला।
हे प्रभु! तू  क्यों है मूक  बधिर,
उस पल क्यों अंत न कर डाला।।

दुष्टों  के   क्रूर   कुकर्मों   से,

धरती बोझिल सी होने लगी 
नारी अस्तित्व  है  संकट  में,
बेटियाँ खौफ़ से डरने  लगी।।

अब सज़ा क़ैद से  होगा क्या,

दो  चार  दरिंदे   कम   होंगे ।
बन जाति धर्म के झगड़े फिर,
इस राष्ट्र की  नींव  हिला  देंगे।।

कलुषित विचार व जाति धर्म,

के द्वेष को कम करना  होगा।
शिक्षित  समाज, संस्कारवान,
पीढ़ी  का  दम  भरना  होगा।।

अपराध मुक्त  हो  भारत वर्ष,
आओ मिल कर  संकल्प करें 
स्वछंद  विचर   लें   माँ-बहनें,
एक स्वस्थ समाज की नींव धरें.....
                     (अर्चना द्विवेदी)😢

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Saturday, 1 June 2019

उफ़!ये गर्मी

  

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अद्भुत  शिल्पकार  है  ईश्वर...
प्रकृति रूप है विविध सजाया।
छः  ऋतुओं ने  क्रमशः आकर,
स्रष्टि  सृजन  अनमोल बनाया।।

ज्येष्ठ मास की असहय गर्मी,
ताप  प्रचंड   गरम  लू   देती ।
दिवस हों लंबे अति लघु रातें,
सूर्य सुधा सम द्रव  पी लेती।।

चहुँ   दिशाएँ  तपती  रहती,
चकवा-चकवी प्यासे फिरते।
सूखे  तरुवर,  कूप,  लताएँ,
पथिक राह में जलते  तपते।।

नीड़ में छिपकर पक्षी बैठे ,
पशुओं को तरु छाया भाये।
धनिक चले शिमला,मंसूरी,
दीन खुले नभ में सो जाए।।

छाया तरस  रही छाया  को,
आकुल फिरते हैं सब प्राणी।
पड़ी फुहारें जब बारिश की ,
मन महके पा सोंधी माटी ।।

अति दुखदायक है ये मौसम,
प्रकृति लगे  नीरस  सुनसान।
अधिक ताप से  अच्छी वर्षा,
नवल सृष्टि का  एक वरदान।।

दुःख-सुख आते जाते रहते,
बन प्रेरणा हमें शक्ति  देती।
मत घबराना कष्ट-दुःखों से,
तपती धूप ये हमसे कहती।।
                        (अर्चना द्विवेदी)
फ़ोटो:साभार गूगल

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